पानी बचाया क्या…क्योंकि हर बूंद में  एक जिंदगी है, पानी बना नहीं सकते तो बचाइए जरूर

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सुनील मौर्य : नई दिल्ली

पानी…इसके बिना हम जिंदा नहीं रह सकते। इसे हम सब जानते हैं। लेकिन शायद इसे गंभीरता से नहीं लेते। इसलिए पानी की हर बूंद को बचाना है। आज से और अभी से। अगर आप भी पानी की एक-एक बूंद बचाते हैं समझिए की अपनी आने वाली पीढ़ी की एक-एक सांसें बचा रहे हैं। पानी बचाने के लिए हमें अपने घर के आसपास छोटे-छोटे वैटलैंड (Wetland) बनाने की जरूरत है। जिससे हमारा ग्राउंट वॉटर रिचार्ज होता रहे और आने वाले समय में हमारी जरूरत के हिसाब से पानी की उपलबध्ता हो सके। इसलिए छोटे-छोटे वैटलैंड बनाए रखना बेहद जरूरी है। लेकिन ये वेटलैंड क्या होते हैं..शायद कई लोग इसे नहीं जानते होंगे।

क्या है वेटलैंड (Wetland)

दरअसल, वेटलैंड यानी आर्द्रस्थल। यह न सिर्फ पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखता है बल्कि ग्राउंड वॉटर रिचार्ज करने के साथ अन्य कई पर्यावरणीय समस्याओं से भी हमें बचाता है। यह जानकारी आम है लेकिन खास यह है कि इसे हम लगातार नजरअंदाज करते जा रहे हैं। इस तरह भले ही हम आर्थिक विकास की सीढ़ियों पर लगातार चढ़ते जा रहे हों लेकिन सतत् विकास से काफी हद तक फिसलते जा रहे हैं। जैसा कि ब्रंटलैंड आयोग ने अपनी रिपोर्ट में ‘सतत विकास’ को परिभाषित करते हुए स्पष्ट किया है कि “ भावी पीढ़ियों की आवश्यक्ताओं को पूरा करने की योग्यता से बिना किसी तरह का समझौता किए ही मौजूदा पीढ़ी की आवश्यक्ताओं को पूरा करना है।” लेकिन सवाल वही है कि क्या हम भविष्य में प्राकृतिक संसाधनों की जरूरतों को ध्यान में रख रहे हैं। शायद काफी हद तक नहीं। पानी की बर्बादी लगातार हो रही है। यही वजह है इसके संरक्षण के लिए ही 2021 के लिए वर्ल्ड वेटलैंड डे की थीम ‘वेटलैंड्स एंड वॉटर’ घोषित किया गया है।

वैटलैंड का क्या है महत्व

जैसा कि वेटलैंड एक जटिल इकोसिस्टम होता है जो अंत:स्थल और तटीय क्षेत्र में फैला हुआ है। गांव के तालाबों से लेकर खेती के लिए बने ताल, दलदली भूमि, नदियों एवं सागरों के तटीय इलाकों में बनी सेंक्चुरी समेत मानव निर्मित झील भी एक प्रकार से वेटलैंड है। यह जैवविविधता का संरक्षण करता है। सबसे खास कि यह नेचुरल वॉटर फिल्टर होता है और ग्राउंड वॉटर को रिचार्ज करता है। कई प्रकार के रासायनिक व अन्य विषैले तत्वों को ग्राउंड वॉटर में मिक्स होने से रोकता है। जिस तरह से ह्यूमन बॉडी में किडनी का काम होता है उसी तरह वेटलैंड वॉटर को क्लीन करने और नियंत्रित करने में
बड़ी भूमिका निभाता है। बाढ़ नियंत्रण में भी इसकी बड़ी भूमिका होती है। दरअसल, वेटलैंड में पानी का स्तर बढ़ने पर उसे ज्यादा मात्रा में अब्जॉर्ब करने की क्षमता होती है। कई प्रवासी पक्षियों के लिए वेटलैंड ठिकाना होता है।

इंडिया में क्या है वैटलैंड की स्थिति

ईरान के रामसर में 2 फरवरी 1971 को हुए कन्वेंशन का इंडिया भी सदस्य बना था। उसी समय से वेटलैंड संरक्षण को लेकर इंडिया तैयारी कर रहा है। हालांकि, 1997 से प्रत्येक 2 फरवरी को वर्ल्ड वेटलैंड डे मनाया जाना शुरू हुआ था। वेटलैंड एटलस-2011 की रिपोर्ट के अनुसार देश में 7 लाख 57 हजार 60 वेटलैंड हैं। यह लैंड का कुल 4.6 फीसदी है। रामसर कन्वेंशन के अंतर्गत इंडिया के 26 वेटलैंड को इंटरनैशनल महत्व में शामिल किया गया है। इसके अलावा कुल 68 वेटलैंड को ही देश में लीगल स्टेटस मिला है, जिसकी वजह से लाखों की संख्या में अन्य वेटलैंड अतिक्रमण की चपेट में आ रहे हैं। लिहाजा, समय आ गया है कि इन वेटलैंड को संरक्षित किया जाए व लोगों को भी जागरूक किया जाए तााकि भविष्य में सभी को पानी की उपलब्धता हो सके और पर्यावरण का भी संरक्षण किया जा सके।

भारत में कानून हैं लेकिन नहीं होता सख्ती से पालन

वेटलैंड संरक्षण को लेकर देश में कई कानून हैं। रामसर कन्वेंशन (Ramsar Convention) के बाद 1986 से ही भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की तरफ से राज्य सरकारों को वेटलैंड संरक्षण के लिए वित्तीय सहायता दी जाती है। 2001 में भी नैशनल लेक कन्जर्वेशन प्लान शुरू किया गया था। इसके बाद फरवरी 2013 में नैशनल प्रोग्राम कन्जर्वेशन ऑफ एक्विटिक इकोसिस्टम शुरू किया गया। फिर भी कोई खास सुधार देखने में नहीं आया है। एनजीटी (नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) आए दिन दिल्ली-एनसीआर में वेटलैंड के सिमटते दायरे पर सरकार और प्रशासन को एक्शन लेने के लिए आदेश दे रहा है।

हर जिले के डीएम भी हैं जिम्मेदार

पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम-1986 के तहत वेटलैंड संरक्षण के लिए केंद्र, राज्य और जिला स्तर पर कमिटी बनाए जाने की जिम्मेदारी है। जिला स्तर पर डीएम की अध्यक्षता में 4 एक्सपर्ट समेत अधिकतम 9 लोगों की कमिटी बनाकर वेटलैंड संरक्षण की जिम्मेदारी है। हालांकि, ज्यादातर जिलों में देखा गया है कि यह महद कागजों तक ही सीमित है।

यूपी में हालत सुधारने की है जरूरत

इसरो ने रिमोट सेंसिंग तकनीक से यूपी में कुल 1 लाख 25 हजार 905 वेटलैंड होने की पहचान की थी। राज्य सरकार ने जब सभी जिलों से इस संबंध में रिपोर्ट ली तब यह संख्या महज 1815 मिली। शासन ने भी माना कि डीएम की अध्यक्षता में गठित कमिटी लापरवाही बरत रही है। सबसे चौंकाने वाला आंकड़ा आगरा और मथुरा का है। आगरा में जिला प्रशासन की नजर में महज 1 वेटलैंड है जबकि इसरो ने 1350 की पहचान की है। वहीं, मथुरा में 1877 वेटलैंड होने की तुलना में जिला प्रशासन सिर्फ 3 ही स्वीकार करता है।

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Deputy Editor, BHARAT SPEAKS

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